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नैतिकता से राष्ट्र विकास

आनन्द पुरोहित की कलम से...

जय श्री कृष्ण

ज्ञान की शुरुआत अक्षरों से भले हो, अंको को भले सीखें लेकिन नैतिकता के बिना सब गौण हैं। किसी राष्ट्र के विकास में सबसे महत्वपूर्ण योगदान उस देश के नागरिकों का ही होता है और जब तक उस देश के नागरिक खुद यह न सोचे कि वह अपने और अपने देश के लिए कर रहे हैं तब तक किसी देश के विकास के बारे में सोचना मात्र एक कल्पना ही है। हम अक्सर देखते हैं कि हमारी हर जरूरत पर हमारी नजर सरकार पर होती है, कभी अंदाजा लगाएं की 130 से 140 करोड़ की आबादी वाले इतने बड़े देश का शासन प्रशासन कितने लोग चला रहे हैं ? वास्तव में शासन और प्रशासन हमें दे क्या रहे हैं ? हमारी ठीक वैसे ही स्थिति है जैसे ठंड से ठिठुरती हुए हुई भेड़ों को उन्हीं की ऊन से बने कम्बलें ओढा दी जाती है। हम टैक्स देते हैं बेहतर जीवन स्तर के लिए, मूलभूत सुविधाओं के लिए, आधारभूत ढांचे के लिए, सड़कें बनें, पुल बनें, अच्छा पीने का पानी हो, निर्बाध बिजली मिले, रहने को घर हो, शिक्षा, चिकित्सा, कानून व्यवस्था सब कुछ बेहतर हो, लेकिन निशुल्क सुविधाओं की लालसा हमें आगे बढ़ने से रोक रही हैं। वर्तमान परिपेक्ष में देखें तो कोरोना के संकट काल में हमें लॉक डाउन की जरूरत है। अब इसके विभिन्न स्तर देखिए लोग जिनके घर में महीने भर का राशन भी है और बैंक में बैलेंस भी है वह भी चिल्ला रहे हैं कि हमारे धंधे बंद हो गए। जो मजदूर वर्ग हैं निसंदेह उनको तकलीफ हो रही है, उनका रोजगार छीना है, वह बेरोजगार हैं, घर पर हैं, लेकिन बीमारी से लड़ने के लिए इस वायरस की श्रृंखला को तोड़ना जरूरी है। इसके लिए लॉकडाउन लगा के रखना मजबूरी है, ऐसी स्थिति में उनके भोजन की व्यवस्था विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाएं और सरकार के स्तर पर भी की जा रही है और की भी जा सकती है लेकिन इसमें भी हमारा नैतिक चरित्र किस प्रकार से काम करता है यह भी देखने वाली बात है, क्योंकि हर जगह हर वह व्यक्ति नहीं पहुंच सकता जो इनकी व्यवस्था करता है। यह स्थिति हमें खुद को संभालनी है कि हम अपरिग्रह का पालन करें। हमारी जरूरत के हिसाब से 10- 20 दिन का जो राशन उपलब्ध करवाया जा रहा है उसे ही लेकर संतुष्ट रहें। पिछले लॉकडाउन में ऐसा देखा गया कि कई लोगों ने अपने घरों में छह छह माह का राशन इकट्ठा कर लिया और उससे भी बदतर स्थिति तो यह थी कि एक तरफ से राशन इकट्ठा कर रहे थे और दूसरी तरफ वही लोग अपने ही साथियों को उसे बेच रहे थे। कितनी शर्मिंदगी की बात है यह कि देश संकट से जूझ रहा है, मानवता संकट में है, कल हम जिंदा रहेंगे या नहीं इसका भी कोई भरोसा नहीं है इसके बावजूद हर तरफ ऐसे हालात।

मानवता को जिंदा रखने के लिए, हमें जिंदा रखने के लिए पुलिस हमें कह रही है कि आप घर में रहिए ताकि आप जिन्दा रहें और हम पुलिस से लड़ रहे हैं। कब समझेंगे हम लोग यह शासन व्यवस्था हमारी अपनी है, इसमें हमने अपना नेतृत्व करने के लिए 5 साल के लिए प्रतिनिधि को चुनकर भेजा है, चाहे वह पार्षद हो, विधायक हो या सांसद हो। यह सभी लोग कानून बनाने का और उसकी पालना करवाने का काम कर सकते हैं लेकिन यदि बहुसंख्यक लोग अपने ही चुने हुए प्रतिनिधियों के बनाए कानूनों को मानने से इनकार करेंगे तो कैसे लोकतंत्र हुआ ? इस पर हम सभी को समझने की जरूरत है सरकार ने लोक डाउन के दौरान इमरजेंसी सर्विसेज को चालू रखी ताकि कोई भी व्यक्ति आपातकालीन परिस्थिति में परेशान ना हो लेकिन इसका भी गलत फायदा लोग उठा रहे हैं। एक दवाई का पत्ता जेब में रखें और शहर में घूमते हैं। पुलिस पकड़ ले तो दवाई का पत्ता दिखा दो, आखिर किस को धोखा दे रहे हैं ? जब हम जानते हैं कि अदृश्य वायरस किसी भी रूप में हमें कभी भी पकड़ सकता है और बहुत शीघ्र ही स्थिति नियंत्रण से बाहर भी हो सकती हैं, उसके बावजूद हम निकल पड़ते हैं अपने आप को धोखा देने के लिए।

अपने अंदर नैतिकता रखें कानून को मानिए ,आज अगर हम कानून को नहीं मानेंगे और हमारे कबीलों के हिसाब से रहेंगे, जातियों में बंटे रहेंगे क्षेत्रवाद में बंटे रहेंगे तो हम कभी भी एक विकसित राष्ट्र नही बन पाएंगे  हमारे जो लोग पढ़ लिख कर विदेशों में जा बसे हैं उनसे मशविरा करें क्यों उन देशों में इतना विकास हुआ है ? उसे जानना है। कानून बना देने मात्र से कुछ नहीं होगा उसकी पालना जरूरी है। छोटे-छोटे अपराधी जब वह हमारे कबीले से हो, हमारे गांव मोहल्ले क्षेत्र के हो, हमारी विचारधारा की राजनीतिक पार्टी के हो तब हम उनके पक्ष में खड़े हो जाते हैं और दलील देते हैं कि यह इसकी नादानी थी और से गलती हो गई फिर वही अपराधी आगे चल के हिम्मत करके और बड़े अपराध करने लगते हैं और एक दिन वो गैंगस्टर बनते हैं और इस सभ्य समाज के लिए नासूर बनते है। इसलिए जल्दी और बेहक का ज्यादा प्राप्त करने की कोशिश में अपनी नैतिकता न खोएं, कानून की पालना करें। मानवता की रक्षा के लिए सदैव तैयार रहें। सभी मानव से प्रेम करें, प्रकृति से प्रेम करें तभी हम भारत को विकासशील से विकसित बना पाएंगे।

आनन्द पुरोहित

नागौर

9414244352

Comments

Unknown said…
Kitna kr skta hu ye nahi keh skta par kosis jyada se jyada krne ki hai or hmesa rhegi...
Desh k liye bhi or kisi jaruratmand k liye bhi😊